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उत्तराखंड में शहरों और गांवों की तस्वीर बदलने की चुनौती, क्या सरकार कर पाएगी सुधार?

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संवाददाता | मार्च 23, 2025


देहरादून – उत्तराखंड की धामी सरकार अपने दूसरे कार्यकाल के चौथे वर्ष में प्रवेश कर रही है, और इस दौरान राज्य में विकास कार्यों ने रफ्तार तो पकड़ी है, लेकिन शहरों और गांवों की स्थानीय चुनौतियां अब भी बरकरार हैं। नियोजित विकास, नागरिक सुविधाओं की कमी और बढ़ता पलायन सरकार के लिए बड़ी चुनौतियां बने हुए हैं।

 
धामी सरकार
 

राज्य में शहरों की संख्या तेजी से बढ़ी है, लेकिन नियोजित विकास और आवश्यक सुविधाओं की कमी लोगों की मुश्किलें बढ़ा रही हैं। वहीं, गांवों में पलायन की समस्या अब भी गंभीर बनी हुई है। सरकार शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अवसरों को बढ़ावा देने की दिशा में प्रयासरत है, लेकिन क्या अगले दो वर्षों में ये चुनौतियां हल हो सकेंगी?


शहरों में बुनियादी सुविधाओं की कमी

उत्तराखंड में शहरीकरण की गति तेज हुई है। 2001 में जहां राज्य में 63 शहर थे, वहीं 2011 में यह संख्या 72 हो गई और वर्तमान में यह आंकड़ा 107 तक पहुंच गया है। हालांकि, सड़कें, सीवेज, जल निकासी, यातायात व्यवस्था और सफाई जैसी बुनियादी सुविधाएं अब भी सुचारु रूप से नहीं मिल पा रही हैं।


देहरादून, हल्द्वानी, मसूरी, नैनीताल और अल्मोड़ा जैसे प्रमुख शहरों में अतिक्रमण और अनियोजित विकास बड़ी समस्या बने हुए हैं। राज्य का कोई भी शहर अभी तक पूरी तरह सीवेज नेटवर्क से नहीं जुड़ा है, जिससे जल निकासी और स्वच्छता जैसी समस्याएं लगातार बनी हुई हैं।


गांवों में बढ़ता पलायन, 1726 गांव हुए वीरान

उत्तराखंड में पलायन की समस्या लंबे समय से चिंता का विषय बनी हुई है। राज्य के 15,906 गांवों में से 1,726 गांव पूरी तरह वीरान हो चुके हैं। कई अन्य गांवों में आबादी गिनती के कुछ लोगों तक सीमित रह गई है।


पलायन आयोग की रिपोर्ट बताती है कि शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की कमी के कारण लोग मजबूरी में गांव छोड़ने को मजबूर हैं। यदि सरकार इन क्षेत्रों में ठोस सुधार करे, तो न केवल गांवों की स्थिति सुधरेगी, बल्कि पलायन पर भी लगाम लग सकेगी।


सरकार के प्रयास और आगे की राह

राज्य सरकार ने गांवों और शहरों के विकास के लिए आंतरिक संसाधनों और बाह्य सहायतित योजनाओं के माध्यम से कई प्रयास किए हैं, जिससे कुछ हद तक सफलता भी मिली है। लेकिन अभी लंबा रास्ता तय करना बाकी है।


आने वाले दो वर्षों में सरकार को गांवों और शहरों की चुनौतियों का समाधान निकालने के लिए ठोस रणनीति बनानी होगी। क्या धामी सरकार इस चुनौती से निपटने में सफल होगी, यह देखना दिलचस्प होगा।

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