ब्यूरो | फरवरी 20, 2025
देहरादून: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) के तहत लिव-इन रिलेशनशिप पंजीकरण फॉर्म में पिछले रिश्तों की जानकारी मांगने के प्रावधान पर स्पष्टीकरण देने का निर्देश दिया है।

यह मामला रानीखेत के एक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका से जुड़ा है, जिसमें उन्होंने इस नियम को गोपनीयता का उल्लंघन बताया है। याचिकाकर्ता का तर्क है कि पिछले विवाह, तलाक, या विधवा/विधुर होने जैसी जानकारी मांगना अनुचित है। उनके वकील, जो एक आईआईटी बॉम्बे के पूर्व छात्र और फैशन डिजाइनर हैं, ने तर्क दिया कि लिव-इन रजिस्ट्रेशन के लिए सिर्फ निवास प्रमाण, जन्मतिथि, आधार कार्ड, और किराएदारी से जुड़े दस्तावेज ही पर्याप्त होने चाहिए।
27 जनवरी से लागू हुए UCC के तहत, उत्तराखंड में सभी लिव-इन रिश्तों को एक महीने के भीतर पंजीकृत कराना अनिवार्य कर दिया गया है। ऐसा न करने पर ₹25,000 का जुर्माना या छह महीने तक की जेल का प्रावधान है।
इस कानून के तहत रजिस्ट्रार को यह अधिकार दिया गया है कि वह कपल्स को समन भेजकर उनका बयान दर्ज कर सकता है, जिससे गोपनीयता और दखलअंदाजी को लेकर विवाद खड़ा हो गया है।
इस मामले की अगली सुनवाई शुक्रवार को होगी, और यह फैसला व्यक्तिगत स्वतंत्रता बनाम सरकारी नियंत्रण की बहस में एक महत्वपूर्ण मिसाल कायम कर सकता है।
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